One Stop Solution for Vertigo and Dizziness
सुपीरियर सैमीसर्कुलर डीहिस्सैन्स (Superior Semicircular Dehiscence (SSCD))
क्या आप अपनी घटती हुई सुनने की क्षमता को लेकर चिंतित हैं? क्या आपको अपनी आँखों की पुतली घूमती हुई लगती है, उसकी आवाज़ सुनाई देती है या अपनी खुद की आवाज़ बहुत ज़्यादा ज़ोर से सुनाई देने के बारे में शिकायत है? सुपीरियर सैमीसर्कुलर कैनाल डीहिस्सैन्स के लक्षणों, कारणों, उपचार और सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए लेख पढ़ें।
इस रोग के बारे में
सुपीरियर सैमीसर्कुलर कैनाल डीहिस्सैन्स (Superior Semicircular Canal Dehiscence (SSCD)) कान के भीतरी हिस्से की एक दुर्लभ चिकित्सा समस्या है जिसके फलस्वरूप इसके मरीज में वैस्टिब्यूलर (vestibular) एवं सुनने से सम्बन्धित विकारों के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
सुपीरियर सैमीसर्कुलर कैनाल (superior semicircular canal) के ऊपर स्थित भंवरजाल के हड्डीनुमा हिस्से के गायब हो जाने या पतला होने के कारण यह लक्षण उत्पन्न होते हैं।
SSCD के मरीज़ वर्टिगो (vertigo) और ऐसे औसिल्लोप्सिया (oscillopsia) को अनुभव कर सकते हैं जो तेज़ शोर भरी आवाज़ों द्वारा और तनाव लेने, छींकने या खाँसने जैसी कान के मध्य भाग के दबाव (intracranial pressure) में बदलाव लाने वाली क्रियाओं द्वारा भी उजागर होते हैं।
इस रोग के लक्षणों के सुनने की क्षमता से सम्बन्धित स्वरूपों में ऑटोफ़ोनी (autophony) (खुद की आवाज़ का परिवर्धन (amplification)), शोर भारी आवाज़ों के प्रति अतिसंवेदनशीलता और श्रवणमिति (audiometry) के दौरान उजागर होने वाली एक विशिष्ट प्रवाहकीय श्रवण हानि (conductive hearing loss) शामिल हैं। जहाँ कुछ मरीजों में या तो वैस्टिब्यूलर (vestibular) या फ़िर श्रवण सम्बन्धी परिणाम देखने को मिलते हैं तो वहीं कुछ अन्य मरीज़ों में दोनों का होना पाया जाता है।
SSCD के एक विचित्र लक्षण, औसिल्लोप्सिया (oscillopsia) का महसूस होना, का मरीज़ों द्वारा वर्णन आँखों के या क्षितिज के ऊपर-नीचे होने या ऊपर की ओर स्थित धरातल पर जाने पर वर्टिगो (vertigo) अनुभव करने के रूप में किया जाता है।
कुछ मरीज़ों की प्रतिक्रिया अच्छी होती है जब वे अपने लक्षणों के कारणों को जानते हैं और SSCD के लक्षणों को शुरू करने वाले ट्रिगर्ज़ (triggers) जैसे कि शोर भरी तेज़ ध्वनियों से दूर रहते हैं।
जिन मरीज़ों में ट्रिगर्ज़ (triggers) से बचने के बावजूद भी कोई सुधार नज़र नहीं आता, उन्हें शल्य क्रिया (surgery) द्वारा गुज़रना पड़ सकता है। यदि लक्षण अत्यधिक हैं तो ट्रिगर्ज़ (triggers) से बचने से भी कुछ खास लाभ नहीं होने वाला। ट्रिगर्ज़ (triggers) से बचने के बावजूद भी नियंत्रण में न आने वाले लक्षणों जैसे कि लगातार असंतुलन (disequilibrium), ऑटोफ़ोनी (autophony) (खुद की आवाज़ का परिवर्धन (amplification)), ध्वनि के प्रति अत्यधिक असहिष्णुता और पल्सैटाइल औसिल्लोप्सिया (pulsatile oscillopsia), के कारण अत्यधिक असहजता हो सकती है।