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लेबिरिंथाइटिस

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रोग के बारे में

लेबिरिंथाइटिस अंदर के कान के संक्रमण के कारण होता है, जिससे सूजन होती है जो वेस्टिबुलोकोक्लियर नस को नुकसान पहुंचाती है। यह नस अंदर के कान से दिमाग तक सुनने और संतुलन से संबंधित संकेतों को पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है। अंदर का कान, या लेबिरिंथ, इन कार्यों के लिए जिम्मेदार फ्लूइड से भरी थैलियों और कनाल से मिलकर बना होता है। कोक्लीया, एक घोंघा (स्नैल) के आकार का, फ्लूइड से भरा ढांचा है, जो सुनने के लिए बहुत जरूरी है, जबकि वेस्टिबुलर भाग, जिसमें तीन सेमी-सर्कुलर कनाल और दो थैलियों जैसा स्ट्रक्चर (यूट्रिकल और सैक्यूल) शामिल हैं, सिर को हिलाने से संबंधी जानकारी देकर संतुलन को मैनेज करता है। लेबिरिंथाइटिस कोक्लीअर और वेस्टिबुलर दोनों कॉम्पोनेंट को बाधित करता है, जिससे सुनने की क्षमता कम हो जाती है और असंतुलन होता है।

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सिमटम

  1. चक्कर आना: चक्कर आने की तीव्र अवस्था जो कई घंटों से लेकर कई दिनों तक बनी रहती है।
  2. सुनने की क्षमता में कमी: जिस कान पर असर हुआ है उसमें सुनने की क्षमता में कमी।
  3. टिनिटस: एक कान में लगातार घंटी बजना या गूंजना।
  4. चक्कर आना या अस्थिरता: संतुलन बनाए रखने में मुश्किल।
  5. मतली और उल्टी: अक्सर चक्कर के साथ यह सिमटम होते हैं।
  6. आँखों को फोकस करने में मुश्किल: खास तौर पर सिर को हिलाते समय।

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डयाग्नोसिस

बिल्कुल सही डयाग्नोसिस में कई वेस्टिबुलर टेस्ट शामिल हैं, जिनमें यह शामिल हैं:

  • वीडियोनिस्टाग्मोग्राफी (VNG): आँखों की एबनॉर्मल मूवमेंट का पता लगाता है।
  • क्रैनियोकॉर्पोग्राफी (CCG): शरीर की मूवमेंट और संतुलन का आकलन करता है।
  • सब्जेक्टिव विज़ुअल वर्टिकल (SVV): वर्टिकल ओरीएन्टेशन की धारणा को मापता है।
  • डायनेमिक विज़ुअल एक्यूटी (DVA): मूवमेंट के समय दृष्टि की स्थिरता को ईवैल्यूऐट करता है।
  • ऑडियोमेट्री: सुनने की क्षमता किस हद तक खराब हुई है यह पता लगाने के लिए सुनने की क्षमता को टेस्ट करता है।

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ट्रीटमेंट

सिमटम का मैनेजमेंट

  • दवा: चक्कर आना, मतली और चिंता को कम करने के लिए दवाओं का शॉर्ट-टर्म उपयोग। रिकवरी में बाधा से बचने के लिए इन दवाओं को तीन दिनों से अधिक नहीं लिया जाना चाहिए।
  • वेस्टिबुलर सप्रेसेंट्स: चक्कर आना और सिर घूमने को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, लेकिन इनका उपयोग शॉर्ट-टर्म तक ही सीमित होना चाहिए।

वेस्टिबुलर रिहैबिलिटेशन

अक्यूट सिमटम कम होते ही वेस्टिबुलर रिहैबिलिटेशन शुरू कर देना चाहिए। इस थेरेपी से दिमाग को संतुलन से जुड़े कार्यों में होने वाले बदलाव के अनुकूल बनने में मदद मिलती है, जिसे सेंट्रल काम्पन्सेशन के नाम से जाना जाता है।

व्यायाम का उद्देश्य:

  • वेस्टिबुलोस्पाइनल सिस्टम: खड़े होने और चलने के समय संतुलन में सुधार।
  • वेस्टिबुलर ओकुलर सिस्टम: आराम करने और सिर हिलाने के समय दृष्टि की स्थिरता को बढ़ाना। शरीर की स्थिति और सेंटर ऑफ ग्रैविटी (गुरुत्वाकर्षण) को नियंत्रित करते हैं।

मरीज की स्थिति और सुधार के आधार पर व्यक्तिगत संतुलन अभ्यास की सिफारिश की जाती है। इन अभ्यासों को सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और प्रभावी बनाने के लिए खास निर्देशों के साथ क्लीनिकल मार्गदर्शन में दिन में दो से तीन बार किया जाना चाहिए।

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