One Stop Solution for Vertigo and Dizziness

    एकॉस्टिक न्यूरोमा

    एकॉस्टिक न्यूरोमा एक गैर-कैंसरकारक ट्यूमर या गाँठ है। यह जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे यह संतुलन व सुनने की नस को दबाता चला जाता है जिससे चेहरे का सुन्न पड़ जाना, वर्टिगो (सिर घूमना या चक्कर आना), जीभ का स्वाद बदल जाना, भोजन निगलने में परेशानी होना जैसी कई परेशानियाँ होने लगती हैं। इसके लक्षण, पहचान और उपचार के विभिन्न विकल्पों के बारे में अधिक जानकारी पाएँ लेख के आने वाले भागों में।

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    एकॉस्टिक न्यूरोमा के बारे में

    एकॉस्टिक न्यूरोमा वैस्टिब्यूलोकौक्लियर (vestibulocochlear) नामक नस में होने वाला गैर-कैंसरकारक ट्यूमर है। वैस्टिब्यूलोकौक्लियर नस कान के भीतरी हिस्से को मस्तिष्क से जोड़ती है और यह दो भागों से बनी होती है। इसका एक भाग ध्वनि संचारण (sound transmission) के काम आता है जबकि दूसरा भाग संतुलन से सम्बन्धित सूचना को कान के भीतरी हिस्से से मस्तिष्क तक भेजने में सहायता करता है।

    एकॉस्टिक न्यूरोमा को वैस्टिब्यूलर श्वान्नोमा (vestibular schwannomas) या न्यूरीलेम्मोमास (neurilemmomas) भी कहते हैं। यह अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता है। हालाँकि यह मस्तिष्क को कोई क्षति नहीं पहुंचाता, लेकिन इसके बढ़ने से मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है। आकार में बड़े ट्यूमर अपने आस-पास की उन तंत्रिकाओं (cranial nerves) को दबा सकते हैं जो चेहरे की भाव-भंगिमाओं और छूने की अनुभूति की मांसपेशियों को संचालित करती हैं। यदि ट्यूमर इतना ज़्यादा बढ़ जाए कि वह brainstem या सेरिबेलम (cerebellum) को भी दबाने लगें, तो ऐसी स्थिति में वे जानलेवा भी साबित हो सकते हैं।

    संकेत और लक्षण

    एकॉस्टिक न्यूरोमा के प्रारम्भिक लक्षण अक्सर अति सूक्ष्म होते हैं। कई लोग इन लक्षणों का कारण उम्र के साथ जुड़े बदलावों को मान लेते हैं। इसी वजह से अक्सर डॉक्टर के पास जाना टाल दिया जाता है जिस कारण इस रोग की पहचान इसकी अग्रणी अवस्थाओं में हो पाती है।

    किसी एक कान की सुनने की क्षमता का कम होना, टिन्नीटस (tinnitus) यानि उस कान में घण्टी की आवाज़ इस रोग का एक प्रारम्भिक लक्षण है। एकॉस्टिक न्यूरोमा की वजह से श्रवण-शक्ति की आकस्मिक हानि बहुत कम ही होती है।

    इस रोग के अन्य लक्षण निम्न हैं –

    • चेहरे का सुन्न पड़ जाना या फ़िर झनझनाहट की अनुभूति होना
    • वर्टिगो (सिर घूमना या चक्कर आना) – अस्थिरता
    • असंतुलन
    • चेहरे की मांसपेशियों में कमज़ोरी आना
    • जीभ का स्वाद बदल जाना
    • भोजन निगलने में परेशानी होना
    • आवाज़ में कर्कशता आ जाना
    • संज्ञानात्मक परेशानी का होना

    इन सब में से यदि कोई भी लक्षण निरंतर बना रहे तो शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक से परामर्श लिया जाना चाहिए।

    रोग की पहचान

    • वैस्टिब्यूलर मूल्यांकन – विडियोनिस्टैग्मोग्राफी (videonystagmography) एक महत्वपूर्ण निदानकारी (diagnostic) उपकरण या साधन है।
    • ऑडियोमेट्री – दोनों कानों की सुनने की तीक्ष्णता का मूल्यांकन करने हेतु की जाती है।
    • Magnetic Resonance Imaging (MRI) एकॉस्टिक न्यूरोमा के होने की पुष्टि कर सकती है।

    उपचार

    एकॉस्टिक न्यूरोमा के लिए उपचार के मुख्यतः तीन साधन होते हैं:

    1. पर्यवेक्षण (Observation)

    एकॉस्टिक न्यूरोमा कैंसरकारक नहीं होते और अक्सर धीरे-धीर बढ़ने वाले होते हैं। अक्सर डॉक्टर समय-समय पर MRI स्कैन की मदद से ट्यूमर को मॉनिटर करते हैं और यदि वह ट्यूमर तेज़ी से पनप रहा हो या उसके लक्षण और गंभीर होते चले जा रहे हों तो डॉक्टर और ज़्यादा गंभीर उपचार करने की सलाह देते हैं।

    2. शल्य-चिकित्सा (surgery)

    एकॉस्टिक न्यूरोमा की शल्य-चिकित्सा द्वारा या तो ट्यूमर को पूरा या फ़िर उसका कुछ हिस्सा निकाला जाता है। एकॉस्टिक न्यूरोमा को निकालने की तीन मुख्य शल्य-पद्धतियाँ प्रचलित हैं:

    a) ट्रांसलैबरिंथाइन (translabyrinthine) पद्धति

    इस पद्धति के तहत कान के पिछले हिस्से में एक चीरा लगाकर कान के पीछे की हड्डी को तथा कान के मध्य भाग के कुछ हिस्से को निकाल दिया जाता है। 3 सेंटिमीटर से बड़े ट्यूमरों के लिए इस प्रक्रिया को अपनाने की सलाह दी जाती है। इस पद्धति का लाभ यह है कि इसमें शल्य-चिकित्सक ट्यूमर को निकालने से पहले चेहरे की नस को देख कर बचा सकता है। इस पद्धति का नुकसान यह है कि इससे सुनने की क्षमता पूर्ण रूप से चली जाती है।

    b) रेट्रोसिगमौइड (Retrosigmoid) / सबऔक्सिपिटल (suboccipital) पद्धति

    इस पद्धति के तहत सर के पीछे की तरफ से कपाल या खोपड़ी को खोलकर ट्यूमर के पिछले हिस्से को उजागर किया जाता है। इस पद्धति के उपयोग द्वारा किसी भी आकार के ट्यूमर को निकाला जा सकता है और इसमें सुनने की क्षमता को बरकरार रखने की संभावना भी बनी रहती है।

    c) मिडल फ़ोस्सा (middle fossa) पद्धति

    इस पद्धति के तहत कर्ण नलिका (ear canal) से हड्डी का एक छोटा सा टुकड़ा निकाला जाता है ताकि मस्तिष्क से कान के अंदरूनी हिस्से तक जाने वाले संकरे रास्ते यानि आंतरिक श्रवण नली (internal auditory canal) तक सीमित छोटे-छोटे ट्यूमरों तक पहुंच कर उन्हें निकाला जा सके। मिडल फ़ोस्सा (middle fossa) पद्धति शल्य-चिकित्सकों को मरीज की सुनने की क्षमता को संरक्षित रखने देती है।

    3. पूर्ण ऐण्डोस्कोपिक रीसेक्शन (Total Endoscopic Resection)

    एक नयी और कम आक्रामक तकनीक, जिसे पूर्ण ऐण्डोस्कोपिक रीसेक्शन (Total Endoscopic Resection) कहते हैं, के द्वारा शल्य-चिकित्सक एक छोटे से कैमरे की मदद से (जिसे एक छेद करके अंदर घुसाया जाता है) एकॉस्टिक न्यूरोमा को निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा उपचार की सुविधा कुछ चुनिन्दा मेडिकल सैण्टरों पर उच्च प्रशिक्षित शल्य-चिकित्सकों द्वारा ही प्रदान की जाती है। इस पद्धति के प्रारम्भिक अध्ययनों में परंपरागत शल्य चिकित्सा पद्धतियों के समकक्ष सफ़लता दरों का दावा किया जाता है।

    4. विकिरण चिकित्सा (Radiation Therapy)

    एकॉस्टिक न्यूरोमा के कुछ मरीजों के लिए विकिरण चिकित्सा (radiation therapy) की सलाह दी जाती है। इस उपचार-पद्धति में इस्तेमाल होने वाली अत्याधुनिक तकनीकों द्वारा बड़ी मात्रा में विकिरण को ट्यूमर तक पहुँचाने के साथ-साथ ट्यूमर के आस-पास मौजूद ऊतकों (tissues) का अनावरण और नुकसान सीमित किया जा सकता है।

    मरीज़ों पर विकिरण चिकित्सा का इस्तेमाल करने के दो तरीक़े व्यापक रूप से स्वीकृत हैं। मरीज़ का उपचार करने के लिए दोनों में से कोई एक अपनाया जाता है।

    5. स्टीरियोटैकटिक रेडियोसर्जरी (Stereotactic Radiosurgery (SRS))

    सिंगल फ्रैक्शन स्टीरियोटैकटिक रेडियोसर्जरी (single-fraction stereotactic radiosurgery) के एक दौर में विकिरण की अनेकों छोटी-छोटी किरणों को ट्यूमर पर लक्षित किया जाता है।

    6. फ्रैक्शनेटेड स्टीरियोटैकटिक रेडियोसर्जरी (Fractionated Stereotactic Radiotherapy (FRS))

    अनेक दौरों वाली फ्रैक्शनेटेड स्टीरियोटैकटिक रेडियोसर्जरी (Fractionated Stereotactic Radiotherapy (FRS)) के तहत विकिरण को कम मात्राओं में प्रतिदिन कई हफ़्तों तक दिया जाता है। स्टीरियोटैकटिक रेडियोसर्जरी (Stereotactic Radiosurgery (SRS)) के बनस्पत इस इलाज से सुनने की नस पर कम नुकसान होता है।

    डॉ अनीता भंडारी

    डॉ अनीता भंडारी एक वरिष्ठ न्यूरोटॉलिजिस्ट हैं। जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज से ईएनटी में पोस्ट ग्रेजुएट और सिंगापुर से ओटोलॉजी एंड न्यूरोटोलॉजी में फेलो, डॉ भंडारी भारत के सर्वश्रेष्ठ वर्टिगो और कान विशेषज्ञ डॉक्टरों में से एक हैं। वह जैन ईएनटी अस्पताल, जयपुर में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में जुड़ी हुई हैं और यूनिसेफ के सहयोग से 3 साल के प्रोजेक्ट में प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर के रूप में काम करती हैं, जिसका उद्देश्य 3000 से अधिक वंचित बच्चों के साथ काम करना है। वर्टिगो और अन्य संतुलन विकारों के निदान और उपचार के लिए निर्णायक नैदानिक ​​उपकरण जयपुर में न्यूरोइक्विलिब्रियम डायग्नोस्टिक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किए गए हैं। उन्होंने वीडियो निस्टागमोग्राफी, क्रैनियोकॉर्पोग्राफी, डायनेमिक विज़ुअल एक्यूआई और सब्जेक्टिवेटिव वर्टिकल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ अनीता भंडारी ने क्रैनियोकॉर्पोग्राफी के लिए अपने एक पेटेंट का श्रेय दिया है और वर्टिगो डायग्नोस्टिक उपकरणों के लिए चार और पेटेंट के लिए आवेदन किया है। वर्टिगो रोगियों का इलाज करने के लिए वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करके अद्वितीय वेस्टिबुलर पुनर्वास चिकित्सा विकसित की है। उन्होंने वेस्टिबुलर फिजियोलॉजी, डायनेमिक विज़ुअल एक्युइटी, वर्टिगो के सर्जिकल ट्रीटमेंट और वर्टिगो में न्यूरोटोलॉजी पाठ्यपुस्तकों के लिए कठिन मामलों पर अध्यायों का लेखन किया है। उन्होंने वर्टिगो, बैलेंस डिसऑर्डर और ट्रीटमेंट पर दुनिया भर में सेमिनार और ट्रेनिंग भी की है। डॉ अनीता भंडारी एक वरिष्ठ न्यूरोटॉलिजिस्ट हैं। जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज से ईएनटी में पोस्ट ग्रेजुएट और सिंगापुर से ओटोलॉजी एंड न्यूरोटोलॉजी में फेलो, डॉ भंडारी भारत के सर्वश्रेष्ठ वर्टिगो और कान विशेषज्ञ डॉक्टरों में से एक हैं। वह जैन ईएनटी अस्पताल, जयपुर में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में जुड़ी हुई हैं और यूनिसेफ के सहयोग से 3 साल के प्रोजेक्ट में प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर के रूप में काम करती हैं, जिसका उद्देश्य 3000 से अधिक वंचित बच्चों के साथ काम करना है। वर्टिगो और अन्य संतुलन विकारों के निदान और उपचार के लिए निर्णायक नैदानिक ​​उपकरण जयपुर में न्यूरोइक्विलिब्रियम डायग्नोस्टिक सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किए गए हैं। उन्होंने वीडियो निस्टागमोग्राफी, क्रैनियोकॉर्पोग्राफी, डायनेमिक विज़ुअल एक्यूआई और सब्जेक्टिवेटिव वर्टिकल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ अनीता भंडारी ने क्रैनियोकॉर्पोग्राफी के लिए अपने एक पेटेंट का श्रेय दिया है और वर्टिगो डायग्नोस्टिक उपकरणों के लिए चार और पेटेंट के लिए आवेदन किया है। वर्टिगो रोगियों का इलाज करने के लिए वर्चुअल रियलिटी का उपयोग करके अद्वितीय वेस्टिबुलर पुनर्वास चिकित्सा विकसित की है। उन्होंने वेस्टिबुलर फिजियोलॉजी, डायनेमिक विज़ुअल एक्युइटी, वर्टिगो के सर्जिकल ट्रीटमेंट और वर्टिगो में न्यूरोटोलॉजी पाठ्यपुस्तकों के लिए कठिन मामलों पर अध्यायों का लेखन किया है। उन्होंने वर्टिगो, बैलेंस डिसऑर्डर और ट्रीटमेंट पर दुनिया भर में सेमिनार और ट्रेनिंग भी की है।

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